Ghalib अपने दोस्त Hali की नज़र में | हिंदी में पढ़ें 'यादगार- ए- ग़ालिब' | Deepak Ruhani | EP 810
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
मिर्ज़ा ग़ालिब एक ऐसा नाम हैं, जिनके बारे में न जाने कितना कुछ लिखा जा चुका है. एक बेहतरीन शायर, ज़हीन शख्सियत और उदार व्यक्तित्व, ग़ालिब हर एक रंग में रंगे थे. उन पर तमाम दीवान लिखे गए मगर अल्ताफ़ हुसैन हाली की 'यादगार- ए- ग़ालिब' की बात ही और है. मौलाना हाली का ग़ालिब पर बहुत विस्तृत काम रहा है और दीपक रूहानी ने उनका यह काम हिंदी के पाठकों तक पहुंचाने का बखूबी प्रयास किया है. यह किताब निश्चित रूप से ग़ालिब को जानने और समझने में मददगार साबित होती है.
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आज की किताबः 'यादगार- ए- ग़ालिब
लेखक: अल्ताफ़ हुसैन हाली
अनुवाद: दीपक रूहानी
भाषा: हिंदी
विधा: जीवनी
प्रकाशक: रेख़्ता पब्लिकेशंस
पृष्ठ संख्या: 118
मूल्य: 249
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.