मेरी खामोशी के सन्नाटे में... आगरा जेल में: बंदी कवियों के मुशायरे से जब हिल गई थीं | Rajwanti Mann
हृदय को आज हम तेरे लिये तैयार करते हैं
तुझे आनंद सा, सुख सा सदा हम प्यार करते हैं
तुझे हंसता हुआ देखें, किसी दुखिया के मुखड़े पर
इसी से सतपुरुष प्रत्येक का उपकार करते हैं... पं रामनरेश त्रिपाठी ने यह ग़ज़ल जेल में पढ़ी थीं.
दिल से पसंद आई बहारे क़फ़स मुझे. 'आगरा जेल में बंदी कवियों के मुशायरे: 1922' पुस्तक के माध्यम से लेखक राजवंती मान ने आगरा जेल में हुए कुल ग्यारह मुशायरों में पढ़ी गईं एक सौ तीस से अधिक ग़ज़लों/कविताओं को एक सदी बाद पाठकों के सामने लाने का प्रयास किया है. उन स्मरणियों की स्मृतियां संजोना न केवल हमारा दायित्व है बल्कि यह मनुष्यता के संग-संग संस्कृति-सभ्यता को भी उदात्त बनाता है. आज बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों, अपनी जगह से खिसकते सामाजिक मूल्यों और परिवर्तित राष्ट्रीयता के मानदंडों के बीच यह पुस्तक एक दृष्टांत है जिसमें भारत की बहु-विध संस्कृति की जगमगाहट है, गंगा जमुनी तहजीब की सुंदर छवि है और असीम देशप्रेम है.
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आज की किताबः ‘आगरा जेल में: बंदी कवियों के मुशायरे-1922’
लेखक: राजवंती मान
विधा: इतिहास
भाषा: हिंदी
प्रकाशक: न्यूवर्ल्ड प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 199
मूल्य: 350 रुपये
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए इस पुस्तक की चर्चा.