Vijayshree Tanveer की 'सिस्टर लिसा की रान पर रुकी हुई रात' की कहानी सुनिए Sanjeev Paliwal से |
'एक दिन तुम इस दुनिया से पूरी तरह ऊब जाओगी. उस दिन तुम्हें किसी को विदा कहते कोई शोक न होगा' कई साल पहले वह जून महीने की एक बेहद ठंडी शाम थी जब सर्दसेर पहाड़ की बुलंदी पर बैठे एक कनफटे गोरे योगी ने मेरे अहमकाना तर्कों से उकताकर मुझे यह बद्दुआ दी थी. वह मनहूस दिन मेरे जीवन में बहुत जल्द आ गया था और उस एक दिन के बाद ऋत और अनृत के बीच झूलते हुए मैंने उसे लगभग रोज़ ही याद किया था. जब-तब मेरे भीतर उसके तंबूरे की तान वीतराग-सी बज उठती है....यह पंक्तियां विजयश्री तनवीर के कहानी संग्रह 'सिस्टर लिसा की रान पर रुकी हुई रात' से ली गई हैं. इस संग्रह को हिन्द युग्म ने प्रकाशित किया है. कुल 7 कहानियां समेटे इस पुस्तक में 192 पृष्ठ हैं. और इस संग्रह का मूल्य है 249 रुपए. अपनी आवाज से किसी भी कृति को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और अपराध कथा लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह में दर्ज़ कहानी 'निर्वाण' सिर्फ़ साहित्य तक पर