भावनाओं को सुलगाती, सुलझाती कहानियां | Vimal Chandra Pandey का 'मारण मंत्र' | EP 622 | Sahitya Tak
इन कहानियों में गजब का आमादापन है, बेधड़क लड़कपन है लेकिन इनके पात्र लम्पट नहीं हैं. अपनी सारी कमजोरियों और बदमाशियों के बावजूद उनके पास एक तेज और सनसनाती वर्ग चेतना है, धधकती हुई भावनाएं हैं और सुलगती हुई गहराइयां भी जो ‘मारण मंत्र’ जैसी कहानी को सम्भव बनाती हैं. उसकी मार्मिकता जितनी विध्वंसक है उतनी ही आत्मघाती भी. प्रेम, रहस्य, वीभत्स तांत्रिक साधना और कामुकता के इस घातक मिश्रण को जाति और वर्ग भेद के कॉम्पलेक्स और ज्यादा जहरीला बना देते हैं. इन कहानियों में फटीचरों, मुफलिसों और गांजा-चरस या शराब पीने वाले नशेड़ियों का हुजूम जिस धरातल पर खड़ा है, उस धरातल के तापमान को पहचानने की जरूरत है. ये बिखरे और बिफरे हुए लोग जिस स्थायित्व और सम्मान के हकदार हैं वह उन्हें नहीं मिला तो हमारी पूरी सामाजिक संरचनाएं तार-तार हो सकती हैं.
‘ई इलाहाब्बाद है भइया’ जैसा चर्चित संस्मरण लिखने वाले विमल चंद्र पांडेय का यह चौथा कहानी संग्रह है. इससे पहले ‘डर’, ‘मस्तूलों के इर्द-गिर्द’ और ‘उत्तर प्रदेश की खिड़की’ उनके कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. समय को एक ऐसे किस्सागो की जरूरत थी, विमल चन्द्र पाण्डेय इस जरूरत को पूरा करते हैं. उनकी कहानी ‘जिन्दादिल’ का सिर्फ एक वाक्य ही काफी है- ‘उनके घरों में पैसे की कमी थी, लेकिन उनके भीतर जीवन की कमी नहीं थी.’ इस छोटी-सी बनारसी अन्दाज की कहानी में ऊंचे तबके के ब्रांडेड जूतों के साथ निचले तबके के डुप्लीकेट जूतों की सीधी टक्कर है. विमल की कहानियों के पांव अपने ठेठ लोकेल पर टिके हैं, लेकिन आंखें चारों तरफ देखती हैं. मनोज रूपड़ा जब इस संग्रह पर अपनी बात कहते हैं तो इसी अंदाज में कहते हैं.
आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने विमल चन्द्र पाण्डेय के कहानी-संग्रह 'मारण मंत्र' की चर्चा की है. राजकमल प्रकाशन समूह के उपक्रम लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित इस कहानी-संग्रह में कुल 143 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य 199 रुपए है.