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साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' में 'उपन्यास' की पुस्तकें ये हैं.
तुम्हें जाना कहां है | संत
* संत के जीवन की यह आत्मकथानुमा गाथा, कहने के लिए उपन्यास है, पर इसका एक-एक शब्द सच है. यह कथ्य अपनी संवेदना और भावों के साथ जितनी जमीनी है, उतना ही अध्यात्मिक भी. समाज और मेलमिलाप का रंग, कब संत के पास, समर्पण, भक्ति और प्रेम में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता. प्रकाशक: सर्व भाषा ट्रस्ट
'पूर्व-राग' | अरुण प्रकाश
* इस कृति से मिथिला समाज का नग्न सत्य दिखता है, जिनसे तत्कालीन जनता परेशान थी. बाढ़-सूखा और क्रूर कर-वसूली प्रणाली से पीड़ित किसानों के जीवन में व्याप्त दुख, दैन्य और भुखमरी का खुला वर्णन, पंजीप्रथा, जातिगत और लैंगिक भेदभाव, सत्ता-सामंत और व्यापारियों के गठजोड़ के साथ बौद्ध और सनातन के संघर्ष की पृष्ठभूमि में बौद्ध मठों के शिवालय में बदले जाने की बेबाक गाथा इस कृति को खास बनाती है. प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन
'काँस' | भगवानदास मोरवाल
* यह कृति मेवात में मर्दवादी क़ानून अर्थात रिवाज़े-आम यानी कस्टमरी लॉ जैसे अमानुषिक और बर्बर कानूनों की भोथरी धार से लहूलुहान होती चाँदबी, जैतूनी, जैनब, शाइस्ता, समीना, अरस्तून आदि की चीत्कार भरी दास्तान कहती है. यहां एक ऐसा प्रचलित क़ानून है, जिसे न केवल वैधानिकता प्राप्त है, बल्कि आज़ाद भारत के संविधान के विरुद्ध खुलेआम इसका इस्तेमाल हो रहा है. प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
'खारकीव के खंडहर' | डॉ अजय शर्मा
* आखिर भारतीयों या दुनिया के अन्य हिस्सों में रहने वाले छात्रों, किशोरों, युवक-युवती, बच्चे और बुजुर्गों के लिए सरहदों का क्या अर्थ है? इसी तरह भारतीय छात्रों के लिए अपनी जमीन से बाहर की भूमि विदेशी ही है. शिक्षालय चाहे रूस के हों या यूक्रेन के, युद्ध का शिकार किसी भी मनुष्य को क्यों होना चाहिए? प्रकाशक: साहित्य सिलसिला पब्लिकेशन
शहंशाह अकबर: एक अनमोल विरासत | प्रदीप गर्ग
* क्या आप जानते हैं कि अकबर को मुसलमान, हिंदू और अंग्रेज, तीनों पसंद नहीं करते? आखिर इसकी क्या वजह है? उत्तर देती है यह कृति इस महान शासक का सच दिखाने की कोशिश करती है. उपन्यास होकर भी यह इतिहास के तानेबाने के साथ चलती है. प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
'टिप टिप बरसा पानी' | डॉ अभिज्ञात
* चौदह अध्यायों में बंटे इस उपन्यास का हर खंड ऐसे मोड़ पर पहुंच कर समाप्त होता है, जो अगले अध्याय को पढ़ने की उत्सुकता जगाता है. यह प्रौढ़ हो चले अंग्रेजी के एक चर्चित उपन्यासकार और एक युवा महिला प्रोफेसर की प्रेम-कथा है, जिसका घटनाक्रम भारत से लेकर अमेरिका तक फैला हुआ है. प्रकाशक: आनन्द प्रकाशन
'अजायबघर' | केशव चतुर्वेदी
* घर! केवल दीवारें और खंडहर, वर्तमान, भविष्य और अतीत से ही नहीं बनते. पत्रकार-लेखक चतुर्वेदी का यह पहला उपन्यास अपने नाम 'अजायबघर' की तरह ही पाठकों के मन पर भी अजीबोगरीब छाप छोड़ता है. चालीस के दशक से पचहत्तर के आसपास के कालखंड तक फैला यह कथानक सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक हालातों और बदलावों का भी चित्रण करता है. प्रकाशक: काव्यांश प्रकाशन
'बिन ड्योढ़ी का घर' भाग-तीन | उर्मिला शुक्ल
* यह कृति बिना किसी नारे के सरकारी व्यवस्था, आधुनिकता, नक्सलवाद और परंपरा की पोल खोलते हुए, अंततः मनुष्यता और मानव मन से जुड़े संबंधों को स्थापित करती है. प्रकाशक: अनुज्ञा बुक्स
'तलाश खुद की' | एकता सिंह
* लेखिका ने अपने जीवन में तमाम उपलब्धियों के बीच भी उदासी, अवसाद और एकाकीपन का जो अनुभव किया थी, उसी से यह मनोवैज्ञानिक कृति लिखी. जो जितना औपन्यासिक है, उतना ही प्रेरक भी. प्रकाशक: राजकमल पेपरबैक्स
हीरा मंडी | राजेन्द्र राजन
* लाहौर का वह कालखंड अपने अनूठे मिजाज और नज़ाकत के लिए दुनिया भर में मशहूर था, जिसकी तुलना पेरिस की रंगीनियत से की जाती थी. पर रंगीनियत की उन्हीं गलियों में सिनेमा, संगीत के बीच क्रांति की लौ भी कभी-कभी चमकती थी. आखिर संयुक्त भारत की वह मंडी आजादी के बाद तरक्की की राह में इतनी धुंधला क्यों गई. प्रकाशक: राजपाल एंड सन्ज़