यार की गलियां तंग होती हैं... Rajeev Kumar की 'नमी बची रहती है आखिरी तल में' | Sahitya Tak
कभी नहीं सुना अंधेरों ने सुबह नहीं होने दिया
अपनी भव्यता में भी रातें असुरक्षित होती हैं
डरी हुई रातें दिलों की चुनौती नहीं बन सकतीं
एक चांद चिढ़ाता रहता है रातों की बुलन्दी को
रोम को पुनर्स्थापित करने के संकल्प में
मुसोलिनी अप्रत्याशित रूप से मारा गया
इटली के सूबे से उठा बवण्डर इतना बड़ा नहीं हो सका
कि पूरे यूरोप को कदमों तले रौंद दे
नेपोलियन बोनापार्ट लौट नहीं सका अपने वॉटरलू से
बहादुर शाह जफर को दो गज जमीन मयस्सर नहीं हुई
यार की गलियां तंग होती हैं
जीत हासिल नहीं होती अधमरे लश्कर से
बांग देता हुआ मुर्गा मुरशिद हो जाए
बादलों के आत्मप्रक्षेपण से ढका नहीं जा सकता सूरज
भोर में चाय-चाय की आवाज दूर तक जाती है
रेलवे स्टेशन के दुर्गन्ध में पनपी
इन चीखती आवाजों को मयस्सर नहीं होती जिन्दगी
किताबें चौराहों पर बेचते हुए
दुनिया बदल देने का दर्शन नहीं बांचा जा सकता
यह भी नहीं सुना भीड़ में किसी को पुकारते हुए
कोई हरकारा पथ-निर्देशक बन जाए
जो नहीं सुना उसे घटित होते नहीं देखा
जो सुनता रहा उसकी प्रामाणिकता भी सन्दिग्ध है... राजीव कुमार के सेतु प्रकाशन से प्रकाशित कविता-संग्रह 'नमी बची रहती है आखिरी तल में' की चुनिंदा रचनाएं सुनें वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक संजीव पालीवाल से.