Shakun And Apshakun: प्राचीन काल से ही मानव शकुन-अपशकुन का विचार करता आ रहा है, महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस में ‘बैठी शगुन मनावति माता’ कहकर शकुन विचार को स्वीकार किया है, अत: शकुन शास्त्र आदि काल से ही हमारी परम्परा का प्रचार व प्रसार पाकर जनमानस में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं आज जीवन इतनी तीव्रता से बदल रहा है कि शकुन का विचार करने का अवसर ही नहीं मिलता, यह सत्य है, परन्तु शकुन तो जाने या अनजाने में होते ही रहते हैं और संभवत: होते भी रहेंगे...तो आइए ज्योतिर्विद शैलेंद्र पांडेय जी से जानते हैं कि, शकुन-अपशकुन क्या हैं ?..