तंत्रसार नामक यह ग्रंथ तंत्र का एक संक्षिप्त विश्वकोश है. चूँकि यह त्रिक शैव दर्शन का एक अत्यंत उन्नत ग्रंथ है, इसलिए यदि किसी नौसिखिए को इसे समझने में कठिनाई हो, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. इसे समझने के लिए, पाठक का स्तर त्रिक शैव दर्शन के एक सच्चे अनुयायी जैसा होना चाहिए. यदि यह आवश्यकता पूरी नहीं होती है, तो बहुत भ्रम और निरंतर निराशा बनी रहेगी. क्योंकि विषयों को यथासंभव सरलता से समझाने के मेरे अथक प्रयासों के बावजूद, इस ग्रंथ का अध्ययन करने के लिए कुछ आध्यात्मिक क्षमता की आवश्यकता है. इस प्रणाली में, कभी-कभी शब्दों की अत्यधिक सीमा के कारण कुछ विषयों पर लिखना भी संभव नहीं होता. क्योंकि अंततः, यह सारा ज्ञान 'अवस्थाओं' से संबंधित है, और 'अवस्थाओं' के बारे में सटीक रूप से लिखना अत्यंत कठिन है...तो आइए ऐसे में ज्योतिर्विद शैलेंद्र पांडेय जी से जानते हैं कि, तंत्रसार में गुरु होने की कौन सी 13 शर्तें बताई गई हैं...