ज्योतिष शास्त्र में यदि किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो और उस पर कोई शुभ दृष्टि न हो तो यह जातक को बहुत प्रभावित करता है। यदि जातक की कुंडली में मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में किसी अन्य अशुभ ग्रह से जुड़ा हो। वहीं लग्न कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो तो अचानक अलगाव का योग स्थापित हो सकता है....तो आइए ज्योतिर्विद शैलेंद्र पांडेय जी से जानते हैं कि, किस लग्न के लिए कौन-सी ग्रह की भूमिका होती है जिम्मेदार