घर! केवल दीवारें और खंडहर, वर्तमान, भविष्य और अतीत से ही नहीं बनते. पत्रकार-लेखक केशव चतुर्वेदी का पहला उपन्यास नाम से तो 'अजायबघर' है, पर यह किसी भी गांव, शहर, कस्बे का कोई भी पुराना महलनुमा 'घर' हो सकता है. यह और बात है कि उस घर के किस्सों को आपने उन नजरों से न देखा हो जैसे चतुर्वेदी 'अजायबघर' में देखते हैं. यह उपन्यास एक घर और उसमें रह रही चार पीढ़ियों की दास्तां बयां करता है. सौ वर्ष की यह कहानी हजार उतार-चढ़ाव से बनती है... इसी घर में व्यक्ति और व्यक्तित्व बने, किस्से- कहानी और किवदंतियां विकसित हुईं लेकिन एक दिन यह घर आहिस्ता-आहिस्ता अजायबघर हो गया. केशव चतुर्वेदी करीब दो दशकों तक प्रिंट, टेलीविजन, रेडियो और ऑनलाइन पत्रकारिता करने के बाद अब कम्युनिकेशन कंसल्टेंट की भूमिका में हैं, और 'अजायबघर' से उन्होंने हिंदी साहित्य जगत में शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है.
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आज की किताबः अजायबघर
लेखक: केशव चतुर्वेदी
भाषा: हिंदी
विधा: उपन्यास
प्रकाशक: काव्यांश प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 240
मूल्य: 350 रुपये
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए इस पुस्तक की चर्चा.