स्मृति की वीथियों से
एक लम्बी टेर आ रही है
चिनगारियां बुझ गईं
पर ताप है कि कम ही नहीं हो रहा
दुख को कुन्द करनेवाली अफ़ीम
चांदी का वरक़ लगाए
बांटी जा रही है
सारा आकाश खुला है
विचार को छोड़कर
इन सबके बीच
हम सब
आत्मीय क्षण टालते हुए
भंवर में घूमती नाव हैं
परन्तु, इस बुरे समय में भी
मां की करुणा ने बचा रखी है
बोरसी भर आंच
जिसकी सुलगन लिये
बचानी है अभी
मन की पूरी पृथ्वी...
एक बच्चा चालीस साल की दूरी से दुनिया को देखता है, उसकी हथेलियों में कसैला पानी-फल है. 2 एक आक्रान्त, अपने आप में डूबा अकेला बचपन और एक आशंकाओं में घिरा अनिर्णीत भविष्य, एक हताश और गहराता हुआ अन्धकार और एक मुक्ति का विश्वास दिलाता जगमग रौशन क्षितीज, एक भयग्रस्त पलायन और फिर पलटकर एक निर्भय प्रत्याघात. जीवन के अनगिन धुंधले सूर्यास्तों और फिर उजालों और उम्मीदों से भरे पुनर्जीवन की मिसाल या प्रतिमान बनते उत्कट जीवन-संग्राम की मार्मिक और रोमांचक कथा कहती, चर्चित युवा रचनाकार- लेखक यतीश कुमार की यह आत्मकथा समकालीन रचनात्मक परिदृश्य में अपनी ख़ास जगह बनाएगी.
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आज की किताबः 'बोरसी भर आँच: अतीत का सैरबीन'
लेखक: यतीश कुमार
भाषा: हिंदी
विधा: संस्मरण
प्रकाशक: राधाकृष्ण प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 198
मूल्य: 350
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.