औरत, औरत होती है उसका न कोई धर्म न कोई जात होती है... Rajni Tilak | औरतनामा | Shruti Agarwal | Tak Live Video

औरत, औरत होती है उसका न कोई धर्म न कोई जात होती है... Rajni Tilak | औरतनामा | Shruti Agarwal



औरत, औरत होती है

उसका न कोई धर्म

न कोई जात होती है

वह सुबह से शाम खटती है

घर में मर्द से पिटती है

सड़क पर शोहदों से छिड़ती है

औरत एक बिरादरी है

वह स्वयं सर्वहारी है

स्त्री वर्ग और लिंग के कारण

दबाई और सताई जाती है.... साहित्य तक के खास कार्यक्रम औरतनामा में आज हम बात कर रहे हैं स्त्री और दलित विमर्श की सशक्त आवाज रजनी तिलक की... रजनी जी का जन्म बेहद सीमित संसाधनों वाले परिवार में हुआ था...पिता एक दर्जी थे...जिन्होंने बेहतर भविष्य के लिए उत्तर प्रदेश से दिल्ली का रुख किया था. अपने शुरुआती जीवन में रजनी ने नौकरी कर परिवार को आर्थिक सहायता दी लेकिन लेखन में उनकी आत्मा बसती थी. वे शुरु से मुखर थीं. खुलकर अपने विचार रखती थीं... इन्हीं विचारों को उन्होंने अपनी पहली कविता...का से कहू दुख अपना लिखकर व्यक्त किया. दिल्ली के आईटीआई कॉलेज में अध्ययन करते हुए उन्होंने लड़कियों के साथ होने वाले लिंग आधारित भेदभाव का विरोध करने के लिए एक संघ का गठन किया. यहां से उन्होंने अपने अंदर नेतृत्व के गुणों को पहचाना और कई मंचों पर वंचितों की आवाज बनी. यहीं से उन्होंने जातिगत समाज और पितृसत्ता दोनों को ही चुनौतियां देना शुरु किया. 1972 में मथुरा बालात्कार मामले में दिल्ली में हुए आंदोलन का नेतृत्व किया था. मथुरा में एक आदिवासी लड़की का न्यायिक हिरासत में बालात्कार हुआ था. इस आंदोलन के बाद रजनी तिलक ने बालात्कार, छेड़छाड़, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य, स्वच्छता आदि के लिए काम करना शुरु कर दिया. उन्होंने आह्हवान नामक एक दलित थिएटर समूह खोला और छात्र जागरुकता कार्यक्रमों की शुरुआत की. अपने मुखर विचारों को ना सिर्फ उन्होंने मंचों पर होने वाले भाषणों से व्यक्त किया बल्कि प्रखर लेखिनी के जरिए कलमबद्ध भी किया. उन्होंने भारत की पहली शिक्षिका सावित्री बाई फुले, बुद्ध ने घर क्यों छोड़ा, हवा में बैचेन युवतियां, दलित स्त्री विमर्थ एंव पत्रकारिता आदि किताबें लिखीं. इनमें से कुछ निबंध थे कुछ गद्य और पद्य भी. वे जितने अच्छे निबंध लिखती थीं उतनी ही मारक कविताएं भी. अपनी किताबों के अलावा उन्होंने समकालीन भारतीय दलित लेखन खंड एक और दो, डॉ अंबेडकर और स्त्री चिंतन के दस्तावेज- संकलित और संपादित किए थे. इन किताबों के अलावा उन्होंने अपने जीवन में आए उतार चढ़ाव और संघर्ष को अपनी आत्म कथा...अपनी जमीन अपना आसमान में उकेरा था. उन्होंने सेंटर फ़ोर अल्टरनेटिव दलित मीडिया की कार्यकारी निर्देशक के रूप में कार्य भी किया था. और नेशनल एसोसिएशन ऑफ दलित ऑर्गनाइजेशन की सह स्थापना की थी. वे दलित लेखक संघ की अध्यक्ष भी थी...यूं देखा जाए तो रजनी तिलक ने अपना पूरा जीवन वंचितों के अधिकारों की लड़ाई के नाम कर दिया था. वे अपने नहीं बल्कि समाज के उस तबके के लिए जीती रही थीं जिनकी तकलीफों को भुला दिया गया था.


**************


ये वे लेखिकाएं हैं, जिन्होंने न केवल लेखन जगत को प्रभावित किया, बल्कि अपने विचारों से समूची नारी जाति को एक दिशा दी. आज का युवा वर्ग कलम की इन वीरांगनाओं को जान सके और लड़कियां उनकी जीवनी, आजाद ख्याली के बारे में जान सकें, इसके लिए चर्चित अनुवादक, लेखिका, पत्रकार और समाजसेवी श्रुति अग्रवाल ने 'साहित्य तक' पर 'औरतनामा' के तहत यह साप्ताहिक कड़ी शुरू की है. आज इस कड़ी में श्रुति 'रजनी तिलक' के जीवन और लेखन की कहानी बता रही हैं. 'औरतनामा' देश और दुनिया की उन लेखिकाओं को समर्पित है, जिन्होंने अपनी लेखनी से न केवल इतिहास रचा बल्कि अपने जीवन से भी समाज और समय को दिशा दी.