संवेदना, करुणा और देसीपन से भरपूर हैं Naresh Kaushik के संग्रह 'रब्बी' की सभी 11 कहानियां | EP 927 | Tak Live Video

संवेदना, करुणा और देसीपन से भरपूर हैं Naresh Kaushik के संग्रह 'रब्बी' की सभी 11 कहानियां | EP 927

हवा इतनी भारी हो चली थी कि पत्ते भी हिलने से डरते थे. रात घिरने वाली थी. खेतों की पगडंडी से होती एक बैलगाड़ी नारायणदास की बैठक के बाहर आकर रुकी, पर बैलगाड़ी से गाड़ीवान नहीं उतरा. पीछे दूर तक पगडंडी की रेत बहते खून से गीली हो चुकी थी... ये पंक्तियां नरेश कौशिक के संग्रह 'रब्बी' से ली गई हैं. कुल 11 कहानियां समेटे यह संग्रह संवेदना, करुणा और देसीपन से भरपूर है.


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आज की किताबः रब्बी

लेखक: नरेश कौशिक

भाषा: हिंदी

विधा: कहानी

प्रकाशक: प्रतिभा प्रतिष्ठान

पृष्ठ संख्या: 144

मूल्य: 300


साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.