अमेरिका ने किस देश के बुद्धिजीवियों को मारा?
इंद्र आगे बढ़ने वालों के खिलाफ हैं?
हास्य-व्यंग्य में क्या है अंतर?
आजकल के लेखकों में क्या है कमी?
ऐसे बहुतेरे सवाल और उनके जवाब आपको मिल सकते हैं हमारे समय के चर्चित व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय से हुई इस बतकही में, जो आज साहित्य तक स्टूडियो में हमारे खास कार्यक्रम 'बातें-मुलाकातें' में मौजूद हैं. जनमेजय व्यंग्य के बड़े हस्ताक्षर तो हैं ही इस विधा के संवर्धन एवं सृजन के क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय हैं. कोई इन्हें व्यंग्य का विश्वविद्यालय कहता है तो कोई व्यंग्य का एक्टिविस्ट. प्रेम जनमेजय के व्यंग्य लेखन को हिंदी साहित्य के लगभग सभी महत्वपूर्ण रचनाकारों एवं आलोचकों ने सराहा है. आपने पिछले लगभग दो दशक से 'व्यंग्य यात्रा' पत्रिका के सम्पादन द्वारा व्यंग्य विमर्श का एक सुदृढ़ मंच तैयार किया है. युवाओं को अवसर दिलाना और उनकी प्रतिभा को लोगों के सामने रखना इस पत्रिका का उद्देश्य है. जनमेजय के रचनाकर्म पर अनेक शोध हो चुके हैं और यह क्रम लगातार जारी है. आपकी प्रकाशित चर्चित कृतियों में राजधानी में गंवार, बेशर्मेव जयते, कौन कुटिल खल कामी, कोई मैं झूठ बोल्या, हंसो हंसो यार हंसो, सींग वाले गधे आदि शामिल हैं. आपको हरिशंकर परसाई स्मृति, शरद जोशी राष्ट्रीय सम्मान, व्यंग्यश्री सम्मान, पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी सम्मान, अट्टहास शिखर सम्मान, कमला गोइन्का व्यंग्यभूषण सम्मान, दुष्यंत कमार अलकरण 'नई धारा' 2015 रचना सम्मान आदि से सम्मानित किया जा चुका है. चर्चा के दौरान जनमेजय ने व्यंग्य साहित्य के दिग्गजों हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और ज्ञान चतुर्वेदी पर भी खुलकर अपनी बात रखी, तो ऐसे सवालों के भी जवाब दिए-
- साहित्य में आपकी रूचि कैसे हुई?
- भक्ति और ज्ञान का अंतर्विरोध साहित्यकारों के बीच कैसे सामने आया?
- कहानी से व्यंग्य की तरफ आप कैसे पहुंचे ?
- व्यंग्य आज के समय में एक विधा के रूप में स्थान बना पाया है?
- आप कोई यात्रा-वृतांत लिख रहे हैं?
तो सुनिए प्रेम जनमेजय ने वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय संग हुई इस चर्चा में क्या कुछ कहा. यह विशेष चर्चा सिर्फ़ साहित्य तक पर.