ओस की तरह झिलमिलाया कर
गीले बालों को मत सुखाया कर
आंख फिर वक़्त पर नहीं खुलती
अपनी बाहों में मत सुलाया कर... अज़हर इक़बाल की यह शायरी सुन कर आ भी बोल पड़ेंगे मुकर्रर सुनिए यह मुशायरा सिर्फ़ साहित्य तक पर