विभाजन की पृष्ठ्भूमि पर लिखा गया उपन्यास Badiuzzaman की 'छाको की वापसी' | Ep - 578 | Sahitya Tak | Tak Live Video

विभाजन की पृष्ठ्भूमि पर लिखा गया उपन्यास Badiuzzaman की 'छाको की वापसी' | Ep - 578 | Sahitya Tak

छाको की वापसी' सय्यद मोहम्मद ख़्वाजा बदीउज्जमाँ द्वारा लिखी गई पुस्तक है जो की विभाजन की पृष्ठ्भूमि पर लिखा गया उपन्यास है. बदीउज्जमाँ का जन्म 30 सितम्बर, 1928- को बिहार के गया शहर में हुआ. प्रगतिशील लेखक आन्दोलन से जुड़कर उन्होंने उर्दू और फिर हिन्दी साहित्य में क़दम रखा. उन्होंने हिन्दी और उर्दू में एम.ए. किया और ओडिशा के भद्रक कॉलेज में उर्दू के प्राध्यापक रहे. मुस्लिम-समाज की संरचना, गठन, जातीय स्मृतियों, आस्था और विश्वास के कुल योग उसकी समूची आन्तरिकता को सघन कलात्मक रचाव से प्रस्तुत करनेवाले उपन्यासों में से यदि किन्हीं दो या तीन अग्रणी रचनाओं का चुनाव किया जाएगा तो ‘छाको की वापसी’ को उस सूची में रखना ही होगा, इसके बिना वह पूरी नहीं होगी. छाको एक धुरी है, जिस पर घूम रही है एक भरी-पूरी दुनिया. हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच से होती हुई दोनों देशों के शासकवर्ग और जनता के वर्ग-हितों की भी सुस्पष्ट पहचान कराती है, और अन्तत: मनुष्य के अस्तित्व के प्रश्न में बदल जाती है. मिट्टी की गन्ध जिस तरह से पूरी कृति में समाई हुई है, उसके आगे देश-प्रेम की भारी-भरकम शब्दावली वाली कितनी ही परिभाषाएं बेकार हैं. सरहदों और सीमाओं में बंधी नागरिकता का एक प्रति-विमर्श रचते हुए यह उपन्यास ज़िन्दगी और ज़मीन के कहीं गहरे, लगभग शाश्वत रिश्ते की ओर इशारा करता है. यही वह रिश्ता है जो आख़िरकार मानव-सभ्यता के विकास का बीज बनता है. ‘एक चूहे की मौत’ जैसे अत्यन्त लोकप्रिय उपन्यास के लेखक का यह उपन्यास नागरिकता और देश की मौजूदा बहसों के सन्दर्भ में और भी प्रासंगिक हो जाता है. और इसलिए आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने बदीउज्जमाँ की पुस्तक 'छाको की वापसी' की चर्चा की है. 173 पृष्ठों के इस पुस्तक को राजकमल पेपरबैक्स ने प्रकाशित किया है, जिसका मूल्य 250 रुपए है.