प्रकृति, प्रेम, स्त्री स्वाभिमान, आदिवासी, परंपरा और साहस उर्मिला शुक्ल के उपन्यास बिन 'ड्योढ़ी का घर' का मूल स्वर है. विशेष बात यह कि यह कृति बिना किसी नारे के सरकारी व्यवस्था, आधुनिकता, नक्सलवाद और परंपरा सबकी पोल खोलते हुए, अंततः मनुष्यता और मानव मन से जुड़े संबंधों को स्थापित करती है. लेखिका की इस बात के लिए भी सराहना की जानी चाहिए कि अपने आप में परिपूर्ण कथानकों के बावजूद वे बिना किसी दोहराव और उबाऊपन के 'बिन ड्योढ़ी का घर' के कथानक को अगले दो और भागों में बिस्तार दे पाईं. तभी तो वरिष्ठ कथाकार मैत्रेयी पुष्पा लिखती हैं. उर्मिला शुक्ल ने हिंदी कथा लेखन में एक आयाम रचा है. किसी उपन्यास का दूसरा भाग लिखना ही साहस का काम है. फिर तीसरा भाग तो उससे भी एक पायदान आगे बढ़ना है. उर्मिला शुक्ल ने यह किया और हमें यह नयी रचना दी...
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आज की किताबः 'बिन ड्योढ़ी का घर: भाग-तीन'
लेखक: उर्मिला शुक्ल
भाषा: हिंदी
प्रकाशक: अनुज्ञा बुक्स
पृष्ठ संख्या: 221
मूल्य: 599
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.