ज़रा क़रीब तो आओ कि ज़िन्दगी कम है
उदास रात है तारों में रोशनी कम है
ये मयकशी मुझे मदहोश कर नहीं सकती
मुझे नज़र से पिलाओ कि बेखुदी कम है
चला था लब पे कोई लेके आग का दरिया
मिला हूं तुमसे तो लगता है तिश्नगी कम है
यहां से दूर भी जाएं तो हम कहां जाएं
तमाम शहर के मौसम में ताज़गी कम है
खड़ी है शाम मेरी ज़िन्दगी के सिरहाने
मुझे गले से लगाओ कि ज़िन्दगी कम है... यह ग़ज़ल डाॅ हरिओम के ग़ज़ल- संग्रह 'मैं कोई एक रास्ता जैसे' से ली गई है, जिसका संपादन ओम निश्चल ने किया. इस संग्रह को सर्वभाषा ट्रस्ट ने 'सर्वभाषा ग़ज़ल सीरीज़' के तहत प्रकाशित किया है. कुल 120 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 199 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा ग़ज़लें सिर्फ़ साहित्य तक पर.