मैं भारत का संविधान हूं, लालकिले से बोल रहा हूं
मेरा अंतर्मन घायल है, दुख की गांठें खोल रहा हूं...कवि डॉ हरिओम पंवार जब भी मंच पर आते हैं छा जाते हैं. साहित्य तक पर सुनिए यह कविता.