वे ऑक्सफोर्ड से पोस्टग्रेजुएशन करने के दौरान पूरे यूरोप में हिचहाईकिंग से घूमी. जी हां, 'हिचहाईकिंग', लिफ्ट लेकर घूमना, जिसे करने में आज के दौर की लड़कियां भी घबराती हैं, उन्होंने 1955 में यह किया और पूरा यूरोप घूमा. वे बेहद अमीर परिवार से थीं, उनके पिता मैसूर रियासत में मंत्री औऱ ग्वालियर के दीवान भीं थे . लेकिन लंदन में पढ़ाई के दौरान उन्होंने डिशवॉशर के रूप में पार्ट टाइम काम किया, दूसरों के झूठे बर्तन धोए, ताकि दुनिया को थोड़ा नजदीक से देख सकें...औरतनामा में आज हम बात कर रहे हैं, आधुनिक भारत की पहली महिला अर्थशास्त्री देवकी जैन की. जिन्होंने अर्थशास्त्र की दृष्टि से समाज में महिलाओं की स्थिति को देखा-परखा. भारतीय समाज को यह समझाया कि हम गरीब तबके में काम करने वाली महिलाओं के आर्थिक योगदान को बिलकुल महत्व नहीं देते हैं, जबकि उस तबके में अधिकांश महिलाएं घर ही चलाती हैं. देवकी ने असाधारण जीवन जिया, उनका जन्म 1933 में मैसूर के उच्चवर्गीय परिवार में हुआ था. अर्थशास्त्र जैसे महिलाओं के लिए अनछुए माने जाने वाले विषय में विशेषज्ञता हासिल की. यह डगर इतनी आसान ना थी. उन्होंने ऑटोबायोग्रफी के रूप में लिखी किताब ‘द ब्रास नोटबुक’ में एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री द्वारा यौन उत्पीड़न की कोशिश का भी जिक्र किया है. जहां इंकार के बाद 'मेरे साथ काम करने के लिए पर्याप्त शिक्षित नहीं' कह कर उन्हें अपमानित किया गया. इस घटना का कुछ समय उन पर असर रहा इसके बाद वे हर रुकावट को परे हटाकर लगातार आगे बढ़ती रहीं. उम्र के सफर के साथ-साथ देवकी जी ने आर्थिक योगदान में महिलाओं की स्थिति को समझा. जाना कि विकासशील देश में महिलाओं के अवैतनिक कार्यों को महत्व नहीं दिया जाता है, भले ही वह कृषि से जुड़े कठिन कार्य हों. यहां तक की गरीब तबके में आर्थिक भार महिलाओं के कांधे पर ही है लेकिन उन्हें समाजिक मान्यता नहीं है. देवकी जैन को साल 1983 में जेंडर एंड पावर्टी के विषय पर 9 यूनिवर्सिटी में लेक्चर देने के लिए स्कैंडिनेवियाई इंस्टीट्यूट फॉर एशियन स्टडीज कोपेनहेगन में फेलोशिप से सम्मानित किया गया. साल 1999 में उन्हें डरबन-वेस्टविल यूनिवर्सिटी की ओर से मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. साल 1995 में यूएनडीपी की बीजिंग वर्ल्ड कॉफ्रेंस में ‘ब्रेडफोर्ड मोर्स मेमोरियल’ अवार्ड मिला. 1984 में वह हावर्ड यूनिवर्सिटी और बॉस्टन यूनिवर्सिटी की फुल ब्राइट सीनियर फेलो भी रह चुकी हैं. सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण में उनके योगदान के लिए 2006 में उन्हें भारत सरकार के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. अपने इस देविका जी ने जो जिया, समझा, जाना, परखा उसे अपनी लेखनी के माध्यम से कागज पर उकेरा और समाज को समझाने की कोशिश की कि महिलाएं सिर्फ परिवार रूपी गाड़ी का पहिया ही नहीं हैं. वे एक अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ भी हैं जिसके योगदान को अकसर भुला दिया जाता है. या यूं कहें कि उस पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता है.
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ये वे लेखिकाएं हैं, जिन्होंने न केवल लेखन जगत को प्रभावित किया, बल्कि अपने विचारों से समूची नारी जाति को एक दिशा दी. आज का युवा वर्ग कलम की इन वीरांगनाओं को जान सके और लड़कियां उनकी जीवनी, आजाद ख्याली के बारे में जान सकें, इसके लिए चर्चित अनुवादक, लेखिका, पत्रकार और समाजसेवी श्रुति अग्रवाल ने 'साहित्य तक' पर 'औरतनामा' के तहत यह साप्ताहिक कड़ी शुरू की है. आज इस कड़ी में श्रुति एक मज़बूत नारीवादी लेखिका 'देवकी जैन' के जीवन और लेखन की कहानी बता रही हैं. 'औरतनामा' देश और दुनिया की उन लेखिकाओं को समर्पित है, जिन्होंने अपनी लेखनी से न केवल इतिहास रचा बल्कि अपने जीवन से भी समाज और समय को दिशा दी.