... भले ही वह तानाशाह है मगर, तुमने उसे चुना है | Madan Kashyap से समय, Democracy और कविता पर बतकही | Tak Live Video

... भले ही वह तानाशाह है मगर, तुमने उसे चुना है | Madan Kashyap से समय, Democracy और कविता पर बतकही

क्योंकि, मेरे अमलो ने मुझे चुना है,

और अब तुम लोग उसे चुनोगे

भले ही आगे चल कर अपने सिर धुनोगे

दुनिया के लोग भले ही पीड़ित हों

अपने-अपने तानाशाहों से

लेकिन, तुम लोग खुश रहोगे

क्योंकि, तुम्हारे हाथ में जनतन्त्र का एक झुनझुना है

इसीलिए, तुम इतराओगे कि भले ही वह तानाशाह है

मगर, तुम ने उसे चुना है !


मदन कश्यप की यह कविता 1984 में प्रकाशित हुई थी. वे हिंदी कविता में प्रेम, संवेदना, सरोकार और प्रतिरोध का स्वर हैं. आधुनिक हिंदी साहित्य में कविता, आलेख, आलोचना से अपनी गंभीर; और सामाजिक, सियासी घटनाओं पर सार्थक, वैचारिक उपस्थिति से विशिष्ट पहचान बनाने वाले कवि मदन कश्यप आज साहित्य तक के खास कार्यक्रम 'बातें- मुलाकातें' में बतौर मेहमान मौजूद हैं. वे अपने कविता-संग्रहों 'लेकिन उदास है पृथ्वी', 'नीम रोशनी में', 'कुरूज', 'दूर तक चुप्पी', 'अपना ही देश' के अलावा 'मतभेद', 'लहुलुहान लोकतंत्र' और 'राष्ट्रवाद का संकट' नामक आलेख संकलनों के लिए भी जाने जाते हैं. हाल ही में उन पर और उनकी रचनाओं पर केंद्रित कुछ पुस्तकें भी आई हैं, उनमें ए अरविंदाक्षन की 'ज़्यादा प्राचीन है वेदना की नदी: मदन कश्यप की कविताओं पर एकाग्र', डॉ मनोज तिवारी के संपादन में 'दयनीय है वह देश' मदन कश्यप की चुनी हुई कविताएँ, देवशंकर नवीन की 'मदन कश्यप की काव्य चेतना' और '75 कविताएँ: मदन कश्यप' शामिल है. साहित्य तक स्टूडियो में हुई इस लंबी बतकही में मदन कश्यप से पूछे गए कुछ सवाल यों थे-


- आपका बचपन कैसा था, किन स्थितियों में पले, बढ़े, लिखा-पढ़ा? किस प्रक्रिया ने आपको कवि बनाया?

- आपकी पहली कविता क्या थी और उसका विषय क्या था?

- आपकी विचारधारा क्या है? क्या आप वामपंथी हैं?

- कवि को राजनीतिक रूप से कितना सक्रिय और क्यों जागरूक होना चाहिए?

- आपके पसंदीदा कवि- साहित्यकार, वरिष्ठ, समकालीन व नए लेखक कौन हैं? उनकी रचनाएं, कुछ का नाम?

- इन दिनों नया क्या लिख रहे हैं?

जाहिर है, इनके उत्तर से हमारे समय के एक महत्त्वपूर्ण कवि का जीवन, साहित्यकारों की वैचारिक प्रतिबद्धताएं और समय-समाज को लेकर उनकी सोच भी सामने आती है. कवि मदन कश्यप का जन्म 29 मई, 1954 को बिहार के वैशाली जिले के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ. वह जब आठ साल के थे, तभी उनकी मां का देहांत हो गया. उन्होंने ननिहाल में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी की और 1979 में रोजी-रोटी की तलाश में धनबाद आ गए. यहीं एक दैनिक पत्र से जुड़कर कोई 2 वर्ष तक सक्रिय पत्रकारिता की. फिर 1981 में एक सार्वजनिक उपक्रम से जुड़ गए. साल 1987 में एक दूसरे सार्वजनिक उपक्रम में पटना आ गए. नवंबर, 2000 में उस नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया. उसके बाद राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर नियमित रूप से लिखना शुरू किया.

संपादक और पत्रकार के रूप में कई बार छोटे-बड़े पदों की अल्पकालिक पारी खेली. कई बार सहयोगी के रूप में, कई बार परामर्शदाता, तो कई बार संपादक के रूप में भी 'श्रमिक सॉलिडरिटी', 'अंतर्गत', 'आलोचना', 'समकालीन जनमत', 'सहयात्री', 'पुरुष', 'समकालीन कविता', 'अभिधा' और 'द पब्लिक एजेंडा' और गृह प्रकाशनों से भी से भी जुड़े रहे.


दूरदर्शन, साहित्य अकादमी, आकाशवाणी, नेशनल बुक ट्रस्ट, हिंदी अकादमी और साहित्य आजतक के आयोजनों में वक्ता और कवि के रूप में सक्रिय भागीदारी निभाई है. अपने कवि कर्म के चलते 'नागार्जुन पुरस्कार', 'केदार सम्मान', 'शमशेर सम्मान' और 'बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान' से सम्मानित मदन कश्यप फिलहाल कविता, राजनीति, इतिहास, जनांदोलन, आदिवासी और शूद्र चिंतन-धारा के अध्ययन के अलावा भारतीय ज्ञानपीठ की फेलोशिप के तहत 'मक्खली गोसाल' के जीवन पर उपन्यास लिख रहे हैं. मदन कश्यप ने अपनी पुस्तकों पर चर्चा के बहाने वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय को क्या कुछ बताया, सुनें इस चर्चा में सिर्फ़ साहित्य तक पर.