सदियों बाद लोग मेरे बारे में पढ़ेंगे
कुचली गईं प्यार में बंधी हथेलियां
जब निकला मेरे होंठों से कोई लफ़्ज़
इतिहास-भूगोल और कविता को भी
काली बर्फ से ढंकता
सोची-समझी क़वायद था
मेरे होंठों से निकलता हर लफ़्ज़
शांत चित्त
बंदूक़ तलवार उठाए बिना
मैंने क़त्ल करवाए
फ़ौज पुलिस नहीं होती तो भी
होता मूर्तिमान
प्रेम का विलोम
हर पल चुपचाप
अट्टहास करता शैतान... लाल्टू की नवारुण प्रकाशन से प्रकाशित कविता-संग्रह 'चुपचाप अट्टहास' की चुनिंदा रचनाएं सुनें वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक संजीव पालीवाल से.