सीमाएं चाहती हैं देश प्रेम न करें
नीतियां चाहती हैं राज्य प्रेम न करें
शहर चाहते हैं गांव प्रेम न करें
गांव चाहते हैं जातियां प्रेम न करें
पुरखे चाहते हैं पिता प्रेम न करें
पिता चाहते हैं मैं प्रेम न करूं
और मैं चाहता हूं मैं खूब प्रेम करूं
दिन-रात प्रेम करूं उससे
जिसके बिना मुझे जिंदगी
जिंदगी नहीं लगती
और हमारे बीच तीसरा कोई न आए
पर एक रोज़ जब मैंने
अपनी मां को प्रेम करते हुए देखा
तो मेरा मन घृणा से भर गया
उस दिन के बाद मां डरने लगी मुझसे
मैंने उसे सख़्त हिदायत दी
आइंदा से प्रेम न करे
ठीक उसी तरह जैसे पिता ने दी थी मुझे
जैसे उनको दी थी पुरखों ने
जैसे एक जाति ने दी थी दूसरी जाति को
जैसे एक शहर ने दी थी कुछ गांवों को
जैसे एक राज्य ने दी थी दूसरे राज्य को
जैसे सीमाओं ने दी थी दो
देशों को और सबने प्रेम करना बंद कर दिया !
फिर धीरे-धीरे सब विष में बदलने लगे... नेहा नरूका की यह कविता राजेश जोशी और आरती द्वारा सम्पादित कविता संग्रह 'इस सदी के सामने: 2000 के बाद की युवा कविता' से ली गयी है.
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आज की किताबः 'इस सदी के सामने: 2000 के बाद की युवा कविता'
सम्पादक: राजेश जोशी, आरती
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: राजपाल प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 415
मूल्य: 650 रुपये
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए इस पुस्तक की चर्चा.