डर बड़ी कुत्ती चीज़ है
क्योंकि ये कुत्ता नहीं हो सकती... ऐसी बेबाक बातें लिखना हर किसी के बस की बात नहीं. और अपने इसी अलमस्त अंदाज़, बेबाक ख़याल के लिए पीयूष मिश्रा जाने जाते हैं. वह जब कहते हैं कि 'मेरी हरकतों से ही मुझे पहचाना जाए' तब उनकी बातों से सदाकत साफ़ झलकती है. हालांकि पीयूष को परिचय देना या दिलवाना, दोनों ही पसंद नहीं. लेकिन आज साहित्य तक के 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में पीयूष मिश्रा हमारे अतिथि के तौर पर मौजूद हैं, तो उनका परिचय देना तो लाज़मी है. पीयूष मिश्रा को आप सभी जानते ही होंगे. चाहे उनके गाने हों, उनकी किताबें हों, उनका संगीत, निर्देशन, बैंड या उनका अभिनय हो, पीयूष मिश्रा हर जगह थोड़ा-थोड़ा मोजूद हैं. गैंग्स ऑफ वासेपुर, गुलाल, तमाशा, रिवाॅल्वर रानी जैसे फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले पीयूष की हाल ही में एक पुस्तक आई है, जिसका नाम है 'तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा'. वे इसे आत्मकथात्मक उपन्यास कहते हैं क्योंकि जीवन की तमाम घटनाओं को दर्ज करते समय उनके जीवन में आई लड़कियों की इज्जत और कुछ निर्देशकों को बख्शना था. पीयूष का दावा है कि यह आत्मकथा उपन्यास जितना बाहर की कहानी बताता है, उससे ज़्यादा भीतर की कहानी बताता है, जिसे ऐसी गोचर दृश्यावली में पिरोया गया जो कभी-कभी ही हो पाता है. इसमें हम दिल्ली के थिएटर जगत, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के कई सुखद-दुखद पहलुओं को देखते हैं; एक अभिनेता के निर्माण की आन्तरिक यात्रा को भी. और एक संवेदनशील रचनात्मक मानस के भटकावों-विचलनों-आशंकाओं को भी. लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि इस किताब की इसका गद्य है. पीयूष मिश्रा की कहन शैली यहां अपने उरूज पर है. पठनीयता के लगातार संकरे होते हिंदी परिसर में यह गद्य खिली धूप-सा महसूस होता है. इसमें एक काव्यात्मक प्रवाह है. पीयूष के फिल्मी करियर के अलावा यदि लेखन की बात करें तो आपकी अबतक कुल 9 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 'कुछ इश्क किया कुछ काम किया', 'जब हमारा शहर सोता है', 'गगन दमामा बाज्यो', 'मेरे मंच की सरगम', 'आरम्भ है प्रचण्ड', 'तुम मेरी जान हो रज़िया बी', 'सन् 2025', 'वो अब भी पुकारता है' शामिल हैं. 'तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा' पुस्तक पीयूष मिश्रा के उन जीवन पहलुओं पर बेबाकी से बात करती है जो शायद अब तक उभरकर पाठकों के सामने नहीं आई. 'तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा' को राजकमल पेपरबैक्स ने प्रकाशित किया है, जिसका मूल्य 299 रुपए है.
खास बात यह कि साहित्य तक के शब्द-रथी कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने जब पीयूष मिश्रा से उनकी इस किताब पर बातचीत की तो इसमें उनके जीवन के अलग-अलग आयाम सामने आए. आप भी देखिए, सुनिए यह बतकही सिर्फ़ साहित्य तक पर.