Hindi Kavita 'कविता का काम आँसू पोंछना नहीं'... 'प्रतिनिधि फिलिस्तीनी कविताएं' | Sanjeev Paliwal | Tak Live Video

Hindi Kavita 'कविता का काम आँसू पोंछना नहीं'... 'प्रतिनिधि फिलिस्तीनी कविताएं' | Sanjeev Paliwal

वह रो रहा था, इसलिए उसे संभालने के लिए मैंने उसका हाथ थामा और आंसू पोंछने के लिए मैंने उसे कहा जब दुख से मेरा गला कैध रहा था: मैं तुमसे वादा करता हूं कि इंसाफ़ जीतेगा आख़िरकार, और अमन जल्दी ही क़ायम होगा.

ज़ाहिर है मैं उससे झूठ बोल रहा था. मुझे पता था कि इंसाफ़ नहीं मिलने वाला और अमन जल्द नहीं आने वाला, पर मुझे उसके आंसू रोकने थे. मेरी यह समझ ग़लत थी कि अगर हम किसी चमत्कार से आंसुओं की नदी को रोक लें, तो सब कुछ ठीक ठाक तरह से चल निकलेगा. फिर चीज़ों को हम वैसे ही मान लेंगे जैसी वे हैं. क्रूरता और इंसाफ़ एक साथ मैदान में घास चरेंगे, ईश्वर शैतान का भाई निकलेगा, और शिकार हत्यारे का प्रेमी होगा. पर आंसू रोकने का कोई तरीक़ा नहीं है. वे बाढ़ की तरह लगातार बहे जाते हैं और अमन की वायतों को तबाह कर देते हैं. और इसलिए, आंसुओं की इस कसैली ज़िद की ख़ातिर, आइए, आंखों का अभिषेक करें इस धरती के सबसे पवित्र संत के रूप में. कविता का काम नहीं है आंसू पोंछना. कविता को खाई खोदनी चाहिए जिसका बांध वे तोड़ दें और इस ब्रह्मांड को डुबा दें...ज़करिया मोहम्मद की यह कविता 'कविता का काम आँसू पोंछना नहीं' नामक कविता- संग्रह से ली गई है. और इस कविता का हिंदी अनुवाद निधीश त्यागी और अपूर्वानंद ने किया है. इस संग्रह को रज़ा फाउंडेशन ने प्रकाशित किया है. इस पुस्तक में दर्ज 'प्रतिनिधि फिलिस्तीनी कविताएं' अशोक वाजपेयी, अपूर्वानंद, यादवेन्द्र, निधीश त्यागी और ऋचा नागर के द्वारा अनूदित हुई हैं. पूर्वा भारद्वाज के संकलन और सम्पादन में कुल 119 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 250 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा कविताएं सिर्फ़ साहित्य तक पर.