- कृष्ण देव शर्मा के कृष्ण 'कल्पित' बनने की कहानी?
- अपनी लिखी पहली ही कविता से कैसे जेल जाते-जाते बचे कृष्ण कल्पित?
- हिंदी साहित्य आज इतनी अराजक दशा में क्यों है?
- 'शराबी की सूक्तियां' माता-पिता को कौन समर्पित करता है? पर कल्पित ने ऐसा किया, क्यों?
- कृष्ण कल्पित पर स्त्रीविरोधी होने का तमगा?
- हिंदी में आलोचना बची है क्या?
- कविताओं के पाठक कम क्यों हुए?
- हिंदी साहित्य को गुटबाज़ी से कैसे नुकसान पहुंचा?कवि-गद्यकार कृष्ण 'कल्पित' साहित्य तक स्टूडियो में हमारे खास कार्यक्रम 'बातें-मुलाकातें' में पहुंचे, तो उन्हें ऐसे ही सवालों से दो चार होना पड़ा. कल्पित का जन्म 30 अक्टूबर, 1957 को रेगिस्तान के एक कस्बे फतेहपुर-शेखावाटी में हुआ. आपने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से हिन्दी साहित्य में प्रथम स्थान से एमए फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान, पुणे से फ़िल्म निर्माण पर अध्ययन किया.
आपकी कविता की सात किताबें प्रकाशित हैं, जिसमें 'भीड़ से गुज़रते हुए', 'बढ़ई का बेटा', 'कोई अछूता सबद', 'एक शराबी की सूक्तियाँ', 'बाग़-ए-बेदिल', 'वापस जानेवाली रेलगाड़ी' और 'रेख़्ते के बीज और अन्य कविताएँ' शामिल हैं. आपकी अन्य प्रमुख कृतियों में - 'हिन्दनामा: एक महादेश की गाथा'. 'हिन्दी का प्रथम काव्यशास्त्र कविता- रहस्य'. 'सिनेमा, मीडिया पर छोटा पर्दा बड़ा पर्दा' प्रकाशित हो चुकी हैं.
मीरा नायर की बहुचर्चित फ़िल्म 'कामसूत्र' में भारत सरकार की ओर से आप सम्पर्क अधिकारी रहे. आपने ऋत्विक घटक के जीवन पर एक वृत्तचित्र 'एक पेड़ की कहानी' का निर्माण किया. आप साम्प्रदायिकता के विरुद्ध 'भारत-भारती कविता-यात्रा' के अखिल भारतीय संयोजक रहे हैं, साथ ही आप समानान्तर साहित्य उत्सव के संस्थापक संयोजक भी रहे. आपको निरंजननाथ आचार्य सम्मान' और 'मेजर रामप्रसाद पोद्दार सम्मान' सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
तो सुनिए कवि-गद्यकार कृष्ण कल्पित से वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय की यह विशेष बातचीत सिर्फ़ साहित्य तक पर.