अपने ही हाथ में ये पतवार संभाली जाए
तब तो मुमकिन है की ये नाव निकली जाए...कवि लक्ष्मी शंकर बाजपाई की यह कविता आप भी सुनें सिर्फ़ साहित्य तक पर