कहा जाता है कि युद्ध स्थिति पर आधारित उपन्यास लिखना एक जोखिम का काम होता है, ये जोखिम और अधिक बढ़ जाता है जब लिखना समसामयिक युद्धों पर हो. यही एक कारण है कि आज के गोला-बारूद वाले युद्धों पर ज्यादा कुछ नहीं लिखा जा रहा. युद्ध स्थिति पर आधारित उपन्यासों के कथानक बड़े पेचीदे होते हैं, जिनमें तालमेल बिठाना और कथानक को रोचकता से आगे बढ़ाना आसान नहीं, लेकिन डॉ अजय शर्मा ने अपने उपन्यासों में इस कार्य को बड़ी ही संजीदगी के साथ पूरा किया है. आलोचक, प्राध्यापक डॉ पान सिंह अपनी नई कृति 'डॉ अजय शर्मा का कथा-लोक' में उनकी 'उपन्यास त्रयी' के साथ उपस्थित हैं. इस कृति में डॉ अजय शर्मा के तीन उपन्यास, 'बसरा की गलियां', 'शहर पर लगी आंखें' और 'खारकीव के खंडहर' तो शामिल हैं ही, डॉ सिंह ने बहुत ही पारखी नज़रों से तीनों उपन्यासों का आलोचनात्मक विश्लेषण किया है. यह किताब पाठक को भू-राजनीति की बारीकियों को समझाते हुए डॉ अजय शर्मा के कथा-लोक में गोते लगाने का अवसर देती है.
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आज की किताबः डॉ अजय शर्मा का कथा-लोक (उपन्यास त्रयी)
लेखक: डॉ पान सिंह
भाषा: हिंदी
विधा: आलोचना
प्रकाशक: साहित्य सिलसिला पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्या: 519
मूल्य: 600
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.