'मैं नारीवादी नहीं हूं, मैं इंसान हूं जो अन्य इंसानों के बारे में लिखती है. यह बात अलग है कि अन्य इंसान महिलाएं हैं. लेखन भरोसे का काम नहीं, वास्तविकता का सामना है. यह उससे सामना करना है, उससे नाता करना है, उसे नकारना नहीं है.' औरतनामा में आज बात हो रही है जानी- मानी साहित्यकार शशि देशपांडे की. पद्मश्री लेखिका शशि देशपांडे ताउम्र खुलकर बोलती और लिखती रहीं. एक ओर जहां उनकी किताबें समाज में महिलाओं की स्थिति को दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर वह मंचों से भी खुलकर बोलती हैं. 'द डार्क होल्डस नो टेरर्स' के अलावा 'रूट्स एंड शैडोज', 'स्मॉल रेमेडीज', 'मूविंग ऑन' शशि देशपांडे के प्रमुख उपन्यास हैं. उन्होंने बच्चों की किताबों सहित कई लघु कथाएं, तेरह उपन्यास और 'राइटिंग फ्रॉम द मार्जिन एंड अदर एसेज' नामक निबंध संग्रह भी लिखा है.
शशि देशपांडे ने अपनी पुस्तकों में पुरुष और महिलाओं के संबंध को विविध रूपों में दर्शाया है. साथ ही यह भी बताया है कि कैसे सामाजिक दबाव, परंपरांगत अपेक्षाएं, परिवार की जिम्मेदारियों के बीच वह स्वतंत्रता की चाह के लिए छटपटाती रहती हैं. उन्होंने अपनी कहानियों में महिलाओं की भूमिकाओं को मानवीय संदर्भ में प्रस्तुत करते हुए बताया कि कैसे आत्मनिर्भरता की चाह रखने वाली महिला को समाज स्टोन वुमन में परिवर्तित कर देता है.
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ये वे लेखिकाएं हैं, जिन्होंने न केवल लेखन जगत को प्रभावित किया, बल्कि अपने विचारों से समूची नारी जाति को एक दिशा दी. आज का युवा वर्ग कलम की इन वीरांगनाओं को जान सके और लड़कियां उनकी जीवनी, आजाद ख्याली के बारे में जान सकें, इसके लिए चर्चित अनुवादक, लेखिका, पत्रकार और समाजसेवी श्रुति अग्रवाल ने 'साहित्य तक' पर 'औरतनामा' के तहत यह साप्ताहिक कड़ी शुरू की है. आज इस कड़ी में श्रुति 'शशि देशपांडे' के जीवन और लेखन की कहानी बता रही हैं. 'औरतनामा' देश और दुनिया की उन लेखिकाओं को समर्पित है, जिन्होंने अपनी लेखनी से न केवल इतिहास रचा बल्कि अपने जीवन से भी समाज और समय को दिशा दी.