मैं दुख बोती हूं, आंसू उगाती हूं... Sandhya Navodita की 'सुनो जोगी और अन्य कविताएँ' | Sahitya Tak | Tak Live Video

मैं दुख बोती हूं, आंसू उगाती हूं... Sandhya Navodita की 'सुनो जोगी और अन्य कविताएँ' | Sahitya Tak

तुम मेरे भीतर

मेरी आत्मा की तरह हो

जिसे मैंने कभी नहीं देखा


तुम कहते हो और मैं सुनती हूं

मैं कहती हूँ और तुम सुनते हो

हम कभी देख नहीं पाते एक-दूसरे को

किसी आवाज जैसा भी कुछ भौतिक नहीं


लेकिन तुम हंसते भी हो

चिढ़ाते भी

कभी बहुत गम्भीर, कभी मगन मन दुनिया

बस गए हो

जाने कब से मेरे भीतर

कभी उत्तर देते हो कभी ख़ामोश एकदम


इस बड़ी दुनिया को

घेर लिया है एक और बड़ी दुनिया ने

जिसमें तुम्हारे और मेरे बीच

एक हरियाला रास्ता है

और मजे की बात कि यह राह कोई सपना नहीं है!


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आज की किताबः 'सुनो जोगी और अन्य कविताएँ'

लेखक: संध्या नवोदिता

भाषा: हिंदी

विधा: कविता

प्रकाशक: लोकभारती पेपरबैक्स

पृष्ठ संख्या: 158

मूल्य: 299


साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.