तुम मेरे भीतर
मेरी आत्मा की तरह हो
जिसे मैंने कभी नहीं देखा
तुम कहते हो और मैं सुनती हूं
मैं कहती हूँ और तुम सुनते हो
हम कभी देख नहीं पाते एक-दूसरे को
किसी आवाज जैसा भी कुछ भौतिक नहीं
लेकिन तुम हंसते भी हो
चिढ़ाते भी
कभी बहुत गम्भीर, कभी मगन मन दुनिया
बस गए हो
जाने कब से मेरे भीतर
कभी उत्तर देते हो कभी ख़ामोश एकदम
इस बड़ी दुनिया को
घेर लिया है एक और बड़ी दुनिया ने
जिसमें तुम्हारे और मेरे बीच
एक हरियाला रास्ता है
और मजे की बात कि यह राह कोई सपना नहीं है!
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आज की किताबः 'सुनो जोगी और अन्य कविताएँ'
लेखक: संध्या नवोदिता
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: लोकभारती पेपरबैक्स
पृष्ठ संख्या: 158
मूल्य: 299
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.