जब भी पेड़ को देखती हूं
आधा देखती हूं
आधा तुम्हें देखने के लिए छोड़ती हूं
हर जगह को आधा ख़ाली रखती हूं
सिरहाने को भी
आधा छोड़ती हूं तुम्हारे लिए
कभी भी
नदी को पूरा पार नहीं कर पाती
आधा पार
जो छोड़ती हूं तुम्हारे लिए
कमल के पत्ते पर पानी कांपता है
चांद कांपता है जैसे राहु के डर से
वसन्त के डर से कांपता है जैसे पतझर
मैं कांपती हूं आधेपन से
आधे चांद से, जल से भरे आधे लोटे से
कांपती हूं तुम्हारे आधे प्यार से... ये कविता नीलेश रघुवंशी के कविता- संग्रह 'एक चीज़ कम' से ली गई है. इस संग्रह को राजकमल पेपरबैक्स ने प्रकाशित किया है. कुल 118 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 199 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा कविताएं सिर्फ़ साहित्य तक पर.