लिखूंगा मैं एक कविता
तुम्हारी आंखों पर
होठों पर, बिखरे बालों पर
पर बीत जाने दो इस धूप से भरे
खुले दिन को, शाम को
आहट तो आने दो रात्रि के पदचापों की
कितना समय बीत गया
जब नई सुरमई पत्तियों से
सारा जंगल भरा था
और तुम्हारे हाथ आकाश से उतरकर
सुर्ख लाल पलाश के फूलों को
प्यार से सहेजते थे...
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आज की किताबः 'हथेली पर खिली धूप'
लेखक: संजय पारिख
भाषा: हिंदी
विधा: कविता
प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ | वाणी प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 148
मूल्य: 300
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.