प्रगतिशील चेतना के अप्रतिम आशावादी ऊर्जावान कवि-गीतकार शैलेन्द्र की कल जयंती है. क्या ही संयोग है कि आज बुक कैफे में उन पर लिखी एक पुस्तक की चर्चा हो रही है. शैलेन्द्र ने मनुष्यता से लबरेज मानीखेज़, उदात्त जीवन मूल्यों से भरपूर गीत रचकर साहित्यिक प्रतिबद्धता का परिचय दिया है. वे जितने उम्दा शायर थे, उतने ही बड़े गीतकार... पर उनके कवि और शायर पक्ष को उनके गीतकार की लोकप्रियता खा गयी. अगर जावेद अख़्तर की मानें तो शैलेन्द्र भारत के एकलौते 'गीतकार' थे. उनके फिल्मी पक्ष की लोकप्रियता की एक बानगी देखें- भारत में 'आवारा' फिल्म का प्रदर्शन 1951 में हुआ था लेकिन तत्कालीन सोवियत संघ के दर्शकों ने इस फिल्म को पहली बार सितंबर 1954 में देखा था. राजकपूर के जादुई अभिनय, मुकेश के सुरीले गायन, शंकर- जयकिशन की मनभावन धुन और शैलेन्द्र के अर्थपूर्ण शब्दों ने सोवियत संघ की जनता पर ऐसा जादू किया कि यह फिल्म और इसका शीर्षक गीत करोड़ों रूसियों के दिलों में बस गया. इन्द्रजीत सिंह द्वारा लिखी 'भारत के पूश्किन-शैलेन्द्र' पुस्तक की खास बात यह है कि यह हिंदी और रूसी भाषा में एक साथ एक ही आवरण में समाहित है. रूसी भाषा में अनुवाद सोनू सैनी और प्रगति टिपणीस ने किया है. ***
आज की किताबः भारत के पूश्किन-शैलेन्द्र
लेखक: इन्द्रजीत सिंह
रूसी अनुवाद: सोनू सैनी और प्रगति टिपणिस
भाषा: हिंदी और रूसी
प्रकाशक: वी के ग्लोबल पब्लिकेशंस
पृष्ठ संख्या: 135
मूल्य: 175 रुपए
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.