एक- एक नब्ज़ पर हाथ रखकर देखता हूं कि... Udayan Vajpeyi की 'खुली आँख और अन्य कविताएँ' | Sahitya Tak | Tak Live Video

एक- एक नब्ज़ पर हाथ रखकर देखता हूं कि... Udayan Vajpeyi की 'खुली आँख और अन्य कविताएँ' | Sahitya Tak



कहीं ओस की बूंद घास के तिनके पर

लुढ़कती हुई गिरने से ऐन पहले थम जाती है

भाप के रेशों में बिखर कर खो जाती है

कहीं चाकू की चमकती नोक

हवा के टुकड़े-टुकड़े कर डालती है

आसमान से उषा का लहू बह निकलता है

कहीं वह किशोरी पर्वत शिखर पर

फरफराती उजास की चिंदी से

अपना सिर ढांक कर नीचे उतर जाती है

कभी अपने सूने हो गये मकान की

एक-एक नब्ज़ पर हाथ रखकर देखता हूं कि

कहीं वह मर तो नहीं गया

बारीक-सी आहट तक को सोखने

घर की सारी छतें-दीवारें नीचे झुक आती हैं

मैं क़लम उठाने को हाथ बढ़ाता हूं

पर कोई मुझे लिखने से रोकता है...कविता की यह पंक्तियां उदयन वाजपेयी के कविता- संग्रह 'खुली आँख और अन्य कविताएँ' में मौजूद कोई मुझे लिखने से रोकता है कविता से ली गई हैं. इस संग्रह को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. कुल 162 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 250 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा कविताएं सिर्फ़ साहित्य तक पर.