उन्मुक्त हंसी उन्मुक्त वचन
लौटा दे कोई बीता बचपन
क्या फिर ये हो सकता है
बीता लम्हा आ सकता है....सुनिए किरण प्रजापति की यह कविता सुनिए सिर्फ़ साहित्य तक