दो लोग प्रेम में हैं या किसी क़ानूनी
या सामाजिक रिश्ते में
और उनमें से एक जाना चाहे
तो क्या दूसरा उसे रोक सकता है?
कभी नहीं...
जैसे प्रेम मन से होता है और शरीर तक पहुंचता है
उसी तरह 'जाना' भी पहले मन से शुरू होता है
किसी का मन से जाना
या शरीर से जाना
दोनों एक ही बात है.
हमने जितने हिस्से देखें हैं संसार के
सिर्फ़ उतना ही तो नहीं होता है संसार
उससे भी बढ़कर अनंत होता है
हमारी कल्पना भी नहीं पहुंच पाती वहां तक
वहां तक है उसका वजूद
महज़ एक झूठ है यह कहना संसार ऐसा है-
संसार वैसा है... यह पंक्तियां नेहा नरूका के कविता- संग्रह 'फटी हथेलियाँ' से ली गई हैं. इस संग्रह को राजकमल पेपरबैक्स ने प्रकाशित किया है. कुल 144 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 199 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा कविताएं सिर्फ़ साहित्य तक पर.