भारतीय सभ्यता का जन्म स्रोत दो महाकाव्य से प्रेरित है, रामायण और महाभारत. संयोग से दोनों ही महाकाव्य प्रलंयकारी युद्धों पर आधारित हैं. दोनों महाकाव्यों के अनुसार सत्य और न्याय स्थापित करने के लिए, अधर्म पर धर्म की विजय के लिए और बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए महायुद्ध लड़ा गया. रणभूमि में धार्मिकता की विजय पताका फहराने के लिए लाखों सैनिकों ने प्राण त्याग दिए. धर्म के रास्ते पर चलते हुए अपने प्राण त्याग देना सर्वोच्च सम्मान माना जाता था. यह लोकाचार और जीवन मूल्य हर भारतीय की रगों में दौड़ते हैं. लेफ्टिनेंट कर्नल अजीत.वी. भंडारकर की वीर गाथा एक ऐसे नायक की कहानी है, जिन्होंने कर्तव्य पथ पर अपने धर्म के लिए लड़ते हुए प्राण न्योछावर कर दिए. उन्होंने अपनी रगों में बहता खून इस मातृभूमि के लिए समर्पित कर दिया. उनका जीवन प्रेरणा की रोशन मिसाल है. अपनी पलटन के उपकमान अधिकारी के रूप में उन्होंने सीमा पार से भारतीय सरजमीं पर घुसपैठ कर रहे चार खूंखार आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा. अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए, उन्होंने स्वेच्छा से त्वरित कार्यवाही टीम का नेतृत्व करने का निर्णय लिया. इस पूरे मिशन में सबसे कठिन कार्य था आतंकवादियों से संपर्क स्थापित करना. अपने वृहद अनुभव और क्षेत्र की विस्तृत जानकारी होने के कारण लेफ्टिनेंट कर्नल भंडारकर ने आतंकवादियों की संभावित प्रतिक्रिया का अनुमान लगा लिया था. उनका आंकलन एकदम सटीक था और उसी के अनुसार उन्होंने योजना बनाकर क्रियान्वयन किया.
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आज की किताबः एक शूरवीर की अमर गाथा
लेखक: शकुंतला अजित भंडारकर
अनुवादकः नित्या शुक्ला
भाषा: हिंदी
विधा: देशभक्ति
प्रकाशक: हाईब्रो स्क्राइब प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 142
मूल्य: 475 रुपये
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.