पत्थर की दीवारें जेल नहीं बनातीं,
न लोहे की सलाखें पिंजरा;
मन निश्छल और शान्त रहता है
उस एक कुटिया के लिए;
अगर मुझे मेरे प्यार में स्वतंत्रता है
और अपनी आत्मा में मैं स्वतंत्र हूं,
तो अकेले देवदूत, जो ऊपर उड़ते हैं,
ऐसी स्वतंत्रता का आनंद लें.
- रिचर्ड लवलेस, अल्थिया को, जेल से.
वरिष्ठ नौकरशाह आशीष कुंद्रा जब पूर्वोत्तर पर लिखी, हार्पर कॉलिंस से प्रकाशित, अपनी पुस्तक A Resurgent Northeast: Narratives of Change' के पहले अध्याय 'नेहरू का ग़लत स्वप्नलोक' की शुरुआत इस कविता से करते हैं, तो यह समझना सहज है कि देश के इस भू-भाग और इसके लोगों को लेकर उनके मन में कितनी पीड़ा है.
पूर्वोत्तर, भारत का एक ऐसा हिस्सा है, जो यहां का होने के बाद भी अपनी पहचान की तलाश में है. एक ऐसा हिस्सा जिसका गौरवशाली इतिहास, भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक सुंदरता, जनजातियां, लोक, भाषा, खानपान और संस्कृति इसे और भी विशिष्ट बनाते हैं. ज़ाहिर है कि भारत विभिन्न भाषाओं, बोलियों और रीति-रिवाज़ों वाला देश है, जहां सब समान हैं. लेकिन फिर भी पूर्वोत्तर क्यों मुख्यधारा से बाहर दिखाई पड़ता है? ऐसा क्यों है कि पूर्वोत्तर के लोग दिल्ली को इतना दूर मानते हैं? आखिर पूर्वोत्तर के राज्य भारत की 'सात बहनें' रहे हैं, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा और मिज़ोरम शामिल है. वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसमें सिक्किम को भी जोड़ते हैं, और इसे 'अष्ट लक्ष्मी' के नाम से पुकारते हैं. फिर ऐसा क्या था कि पूर्वोत्तर को लेकर लोगों की धारणा वैसी नहीं थी, जैसी कि होनी चाहिए...पंडित नेहरू की नीतियों से आज तक क्या कुछ बदला और अपने ढाई दशक के प्रशासनिक नियुक्तियों के दौरान वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी आशीष कुंद्रा ने जो देखा, उसे अपनी पुस्तक 'A Resurgent Northeast: Narratives of Change' में दर्ज किया है. कुंद्रा अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश कैडर से 1996 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी हैं. पिछले छब्बीस वर्षों में उन्होंने चंडीगढ़, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, दमन, दादरा नगर हवेली और नई दिल्ली में विभिन्न नेतृत्वकारी भूमिकाओं में काम किया. वे केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के साथ उनके निजी सचिव के रूप में भी काम कर चुके हैं और वर्तमान में दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव और परिवहन आयुक्त के रूप में काम कर रहे हैं. राष्ट्रीय राजधानी में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी परिवर्तन को बढ़ावा देने में उनकी अपनी भूमिका है.
पूर्वोत्तर में अपनी तैनाती और नियुक्तियों के दौरान कुंद्रा की लोकसेवी भूमिका और लोकप्रियता को उनकी पुस्तक 'A Resurgent Northeast: Narratives of Change' के लोकार्पण समारोह में भी देखा गया था. उस समारोह में पूर्वोत्तर से प्रेम करने वाला हर शख्स मौजूद था. इसी तरह इस पुस्तक पर राजनेता, कूटनीतिज्ञ, लेखक शशि थरूर, निरुपमा राव, रामचंद्र गुहा, बशरत पीर जैसे अफसरों, चिंतकों, लेखकों की राय इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि यह पुस्तक पूर्वोत्तर के नब्ज़ को जांचने-परखने में विशेष योगदान देती है.
साहित्य तक पर लेखकों के जीवन कर्म और उनकी पुस्तकों पर आधारित खास कार्यक्रम 'बातें-मुलाकातें' में आज वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने लेखक एवं वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी आशीष कुंद्रा से उनकी पुस्तक 'A Resurgent Northeast: Narratives of Change' के बहाने पूर्वोत्तर के जीवन, उनकी आवश्यकताएं, वहां के बदलाव, यहां तक कि मणिपुर की हिंसा आदि पर विस्तार से बात की. आप भी सुनिए यह बातचीत सिर्फ़ साहित्य तक पर.
नोटः 'A Resurgent Northeast: Narratives of Change' के प्रकाशक हैं हार्पर कॉलिन्स, मूल्य है 399 रुपए.