क्रूर काली उस रात में
थोड़ा थका जरूर था
एक निमिष में कई जीवन जिया
किंतु प्रति क्षण तुमसे ही जुड़ा रहा
बरसते शैल चट्टानों से
थोड़ा डरा जरूर था
एक शब्द में झरते अनेक अर्थ
परंतु हर अर्थ के सारांश में थे तुम
गरजते घाटी में
शोर से घिरा जरूर
पर लक्ष्य से एक पग भी डिगा नहीं
मैं रहा सब बंधन से मुक्त
समस्त अवरोधों से उदासीन
अंत-अंत तक डटा रहा
मैंने वह शिखर पार किया बस सोचकर
मैं अकेला नहीं हूं...यह कविता कांतेश मिश्र के कविता- संग्रह 'इंद्रप्रस्थ के काश-पुष्प' से ली गई है. इस संग्रह को प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. कुल 166 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 300 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा कविताएं सिर्फ़ साहित्य तक पर.