यह एक अद्भुत किताब है, जो मेल कराती है. मराठी और हिंदी के बीच, उसकी कला, कविता, साहित्य और संस्कृति के बीच. "हिंदी आलोचना में ऐसा बहुत कम है जो साहित्य के अलावा अन्य कलाओं और उनमें चरितार्थ सौन्दर्य-बोध और दृष्टि को हिसाब में लेता हो. भाषा, वाणी, साहित्य के सम्बन्ध और संवाद पर भी विचार कम हुआ है. इस सन्दर्भ में मराठी के भाषा-चिन्तक और आलोचक अशोक केळकर को हिन्दी में प्रस्तुत करना आलोचना के लिए नये रास्ते खोलने और नयी सम्भावनाओं की खोज की ओर संकेत करने जैसा है. हमें यह कृति प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है." - अशोक वाजपेयी
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आज की किताबः 'रुजुवात- आस्वाद: आलोचना: मीमांसा'
लेखक: डाॅ. अशोक रा. केळकर
अनुवाद: गोरख थोरात
भाषा: हिंदी
विधा: आलोचना | अनुवाद
प्रकाशक: रज़ा फ़ाउण्डेशन | सेतु प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 630
मूल्य: 795 रुपए
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.