उनकी कहानियों में प्रेम अभिव्यक्ति भी है, तो कर्म भी. इनके बीच वे अपने सृजन का हुनर पिरोती हैं और अनुभवों की चाशनी से ऐसा संसार रच देती हैं, जिसका एक अलग ही नूर चमकता है. हम बात कर रहे हैं इस दौर की वरिष्ठ रचनाकार मृदुला गर्ग की. मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर, 1938 को कलकत्ता, अब के कोलकाता में हुआ. आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किया. आपकी पहली कहानी सन् 1970-71 में प्रकाशित हुई, तो पहला उपन्यास 1975 में. आप इनसानी रिश्तों की एक अनूठी चितेरी हैं, पर साहित्य के अलावा पर्यावरण, सामाजिक संदर्भ एवं स्त्री विमर्श भी आपके लेखन का केंद्र रहे हैं. आपने केवल भारत ही नहीं अमरीका, यूरोप के अनेक विश्वविद्यालयों और संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़े संस्थानों में बहुतेरे व्याख्यान भी दिये हैं. आपकी रचनाओं के अनुवाद अंग्रेज़ी और जर्मन सहित देश और दुनिया की कई भाषाओं में हो चुके हैं. अपने रचना कर्म के लिए आप हिंदी अकादमी के साहित्यकार सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के साहित्य भूषण सम्मान, महाराज वीरसिंह सम्मान, सेठ गोविंददास सम्मान, व्यास सम्मान, स्पंदन कथा शिखर सम्मान, हैल्मन हैमट ग्रांट, ह्यूमन राइट्स वाच न्यूयॉर्क और मध्य प्रदेश साहित्य परिषद सहित साहित्य अकादमी सम्मान से भी सम्मानित हो चुकी हैं. आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने मृदुला गर्ग की ही नवीन कृति 'वे नायाब औरतें' पर चर्चा की है. मृदुला गर्ग की वे नायाब औरतें क़िताब को हम संस्मरण-स्मरण-रेखाचित्र या आत्मकथा जैसे रवायती फ़ॉर्मेट में फ्रेमबद्ध नहीं कर सकते क्योंकि इसमें बे-सिलसिलेवार, लातादाद 'यादों के सहारे चल रही आपबीती है'- जिसका हर पात्र या उसके तफ़सील का सिरा एक मुकम्मल क़िस्सागोई का मिज़ाज रखता है. यह उनका एक ऐसा अनूठा प्रयोग है जो अब तक के सारे घिसे-पिटे अदब की आलोचना के औज़ारों को परे कर मौलिक विधा के रूप में नज़र आता है. ये क़िताब उत्सुकता से भरा ऐसा तिलिस्म है, जिसमें जाये बगैर आप रह नहीं सकते. 'मैं सहमत नहीं हूं'- इस कृति में आये एक क़िरदार का जुमला ही वह सूत्र है जिसे लगाकर सारी वे नायाब औरतें के वैचारिक-चारित्रिक गणित को हल किया गया है। एक और दिलचस्प पहलू, इसमें पुरुषों के बज़रिये ही क़िस्सागोई के काफी कुछ हिस्से को अंजाम दिया है, यानि औरतों के मार्फत पुरुष भी दाखिल हैं. मृदुला गर्ग की 'वे नायाब औरतें' कृति को वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. कुल 440 पृष्ठ समेटे इस पुस्तक का मूल्य 495 रुपए है.