जाने कितनों ने तख़्त पलटे हैं हुक़्मरानों के
घर में भी और बाहर भी अपनी गुमनामी के बावजूद...औरतों के वजूद को दर्शाती नासिरा शर्मा की यह बेहतरीन कविता...सुनिए सिर्फ़ साहित्य तक पर.