परिन्दा कोई भी देखा नहीं उतरता हुआ Gyanprakash Vivek | 'लफ़्ज़ों का घर' | Sanjeev Paliwal | Sahitya Tak | Tak Live Video

परिन्दा कोई भी देखा नहीं उतरता हुआ Gyanprakash Vivek | 'लफ़्ज़ों का घर' | Sanjeev Paliwal | Sahitya Tak

आरती का अर्थ क्या है ख़ुद समझ जायेंगे लोग

जब अंधेरे रास्तों पर दीप रख आयेंगे लोग


ज़िन्दगी तो ज़िन्दगी है राह का पत्थर नहीं

देखता हूं ज़िन्दगी को कैसे ठुकरायेंगे लोग


खोल दूंगा मैं भी अपने घर की सारी खिड़कियां

जब कभी बदली हुई आबो-हवा लायेंगे लोग


है विरोधी मानसिकता हर किसी की शह्र में

आप अगर सेहरा पढ़ेंगे, मर्सिया गायेंगे लोग


तुम मदद के वास्ते जब भी पुकारोगे यहां

देख लेना काग़ज़ी हमदर्दियां लायेंगे लोग...यह ग़ज़ल ज्ञान प्रकाश विवेक के ग़ज़ल- संग्रह 'लफ़्ज़ों का घर' से ली गई है, जिसका संपादन ओम निश्चल ने किया. इस संग्रह को सर्वभाषा ट्रस्ट ने 'सर्वभाषा ग़ज़ल सीरीज़' के तहत प्रकाशित किया है. कुल 120 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 199 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा ग़ज़लें सिर्फ़ साहित्य तक पर.