अरे! हम अभी भी ऐसे हैं? Rajat Rani Meenu के संपादन में 23 'दलित स्त्री केन्द्रित कहानियाँ' | Ep 739 | Tak Live Video

अरे! हम अभी भी ऐसे हैं? Rajat Rani Meenu के संपादन में 23 'दलित स्त्री केन्द्रित कहानियाँ' | Ep 739

'दलित' शब्द सभ्यता का दम्भ भरने वाले श्रेष्ठ समाज के चेहरे पर अपने आप में बहुत बड़ा घाव है. उस पर अगर यह 'स्त्री' शब्द के साथ जुड़ा हो तो और भी विडम्बनापूर्ण बन जाता है. पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों की स्थिति दोयम दर्जे की ही बनी हुई है. इस कहानी संग्रह की कुल 23 कहानियां इन्हीं विडम्बनात्मक स्थितियों को उभारने का प्रयास करती हैं. इस संग्रह की कुल 23 'दलित स्त्री केंद्रित कहानियों में जयप्रकाश कर्दम की 'पगड़ी', सूरजपाल चौहान की 'चोट', मोहनदास नैमिशराय की 'यात्रा', सुशीला टाकभौरे की 'कड़वा सच', प्रहलाद चन्द दास की 'कजली', श्यौराज सिंह बेचैन की 'हाथ तो उग ही आते हैं', सुमित्रा महरोल की 'प्रतिकार', हरिराम मीणा की 'अमली', अनिता भारती की 'नयी धार', कैलाश वानखेड़े की 'महू', हेमलता महिश्वर की 'कर का मनका डारिके', अजय नावरिया की 'इज्जत', रजनी दिसोदिया की 'छोटी बहू', रजनी तिलक की 'बेस्ट ऑफ करवाचौथ', सूरज बड़त्या की 'गुफाएँ', कौशल पवार की 'हार गयी जिन्दगी', टेकचन्द की 'ए.टी.एम.', पूरन सिंह की 'अरथी', नामदेव की 'चरिता', रजत रानी मीनू की 'सरोगेट मदर', डॉ. सुनीता देवी की 'उमा चली गयी दिल्ली', वन्दना की 'नालियाँ' और दीपा की 'जीत' शामिल है.


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आज की किताबः 'दलित स्त्री केन्द्रित कहानियाँ'

सम्पादक: रजत रानी मीनू

सह-सम्पादक: वन्दना

भाषा: हिंदी

विधा: कहानी

प्रकाशक: वाणी प्रकाशन

पृष्ठ संख्या: 292

मूल्य: 399 रुपए


साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.