उन वन्य लताओं सरीखी जिसमें जल का अक्षय स्त्रोत
होता है जिसे काटकर अरण्य में दिग्भ्रमित जन
प्यास बुझाते हैं वैसे मिलीं
मुझे तुम
हमारे सम्बन्ध की
व्युत्पत्ति मेरे शरीर में है
उतनी देर रुका रहा
जितने समय पीता रहा जल और फिर निकल पड़ा
जंगल में ढूँढ़ता नदी को जंगल में नदी मिलनी ही थी...
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आज की किताबः रुक्मिणी-हरण और अन्य प्रेम कविताएँ
लेखक: अम्बर पाण्डेय
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 128
मूल्य: 225 रुपए
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.