वेश्यालय में छापा... Harish Chandra pande का कविता-संग्रह Kachhar-Katha | Ep- 627 | Sahitya Tak | Tak Live Video

वेश्यालय में छापा... Harish Chandra pande का कविता-संग्रह Kachhar-Katha | Ep- 627 | Sahitya Tak

मछुआरे मछलियां ही नहीं खाते

जैसे आलू की खेती वाले केवल आलू नहीं खाते

मछलियों को पहले रुपयों में बदलना होता है

इस पुल से ही भूख के उस पार जाया जा सकता है

यह पुल टूटता है तो कोई नहीं कहता कि एक पुल टूट गया है

यही सुनाई देता है

एक मछुआरा डूब गया गहरे समुद्र में

नौका और जाल का ऋण पानी में रहकर ही चुकाना है

जो भागा मछुआरा तो जल-सीमा पार धर लिया जाएगा उधर

मछुआरे के क़र्ज़ के लिए कोई बट्टा खाता नहीं होता किसी बैलेंस शीट में

कोई एयरपोर्ट मछुआरे के भागने के लिए नहीं होता......उपरोक्त कविता हरीश चन्द्र पाण्डे की कछार-कथा नामक कविता संग्रह से ली गई है. कुछ ही कवि चेतना की चोट से अब तक की परिभाषाओं को धीरे-धीरे ढहाकर अपनी कविता का परिसर निर्मित कर पाते हैं. हिन्दी के हरीश चन्द्र पाण्डे उनमें से एक हैं. उनमें सायास लिखने की न तो बहुत उठाबैठक है, न अनायास लिखने का क्रीड़ा-विलास और निष्प्रयोजनीयता. बल्कि उनकी कविता की चौहद्दी से बाहर भी संवेदना की बहुत सारी हरी-हरी दूब मुलमुलाकर झांकती मिलती है. ‘गले को ज्योति मिलना’ से लगायत ‘फूल को खिलते हुए सुनना’ जैसे तमाम प्रयोग हरीश चन्द्र पाण्डे के काव्य-संसार में पारम्परिक इन्द्रियबोध को धता बताकर सर्वथा नई तरह की अनुभूति का अहसास कराने में सक्षम हैं. आभासी दृश्यों के घटाटोप को भेदती हुई उनकी कविताएं उन अनगिन आवाज़ों को ठहरकर सुनने का प्रस्ताव करती हैं जिनमें एतराज़, चीत्कार, हंसी और ललकार के अनेक कंठ ध्वनित होते हैं और ‘हर आवाज़ चाहती है कि उसे ग़ौर से सुना जाए’. अपने नतोन्नत पहाड़ों पर खिलते बुरूंश के फूलों से लेकर गंगा-जमुना के अवतल कछारों तक पसरी हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं अपनी सौन्दर्यदृष्टि, प्रतिरोधी चेतना, भावाभिव्यक्ति और इन्द्रियबोध से कविता की तथाकथित मुख्यधारा से अलग उद्गम और सरणी निर्मित करती हैं. उनका प्रस्तावित नया संग्रह 'कछार-कथा' कोई मील का पत्थर नहीं बल्कि कवि के काव्य-परिसर को और आगे तक देखने का आमंत्रण है.आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने हरीश चन्द्र पाण्डे के कविता संग्रह 'कछार-कथा' की चर्चा की है. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह में कुल 127 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य 199 रुपए है.