Ramdarash Mishra की Poetry Book 'खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे' | Sanjeev Paliwal | Sahitya Tak | Tak Live Video

Ramdarash Mishra की Poetry Book 'खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे' | Sanjeev Paliwal | Sahitya Tak

खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे

खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे


किसी को गिराया न खुद को उछाला

कटा ज़िंदगी का सफ़र धीरे-धीरे


जहां आप पहुंचे छलांगे लगा कर

वहां मैं भी पहुंचा मगर धीरे-धीरे


पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी

उठाता गया यों ही सर धीरे-धीरे


गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया

गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे


ज़मीं खेत की साथ लेकर चला था

उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे


न रोकर, न हंसकर किसी में उड़ेला

पिया ख़ुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे


मिला क्या न मुझको, ऐ दुनिया तुम्हारी

मुहब्बत मिली है अगर धीरे-धीरे... यह ग़ज़ल रामदरश मिश्र के ग़ज़ल- संग्रह 'खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे' से ली गई है, जिसका संपादन ओम निश्चल ने किया. इस संग्रह को सर्वभाषा ट्रस्ट ने 'सर्वभाषा ग़ज़ल सीरीज़' के तहत प्रकाशित किया है. कुल 112 पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य 199 रुपए है. अपनी आवाज़ से कविताओं, कहानियों को एक उम्दा स्वरूप देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संजीव पालीवाल से सुनिए इस संग्रह की चुनिंदा ग़ज़लें सिर्फ़ साहित्य तक पर.