स्त्री जीवन शुरू से ही कठिनाइयों भरा रहा है. काल चाहे कोई सा भी हो मगर स्त्रियों के जीवन को कभी भी केन्द्र में रखकर नहीं देखा गया. चाहे आप कस्तूरबा गांधी को देखें या रबीन्द्रनाथ ठाकुर की पत्नी मृणालिनी को, उन सभी ने अपने जीवन के अंदर बहुत ज़्यादा दिक्कतें झेलीं हैं, जिसका प्रमाण न के बराबर मिलता है. रंजन बंद्योपाध्याय ने मृणालिनी के जीवन पर 'मैं रवीन्द्रनाथ की पत्नी' पुस्तक बांग्ला में लिखी है. मृणालिनी रवीन्द्रनाथ ठाकुर की पत्नी थीं, जिन्होंने खुद का जीवन किस तरह बसर किया, उसका अंदाज़ा भर लगाने से आत्मा रो उठती है. ‘मैं रवीन्द्रनाथ की पत्नी’ एक ऐसी पुष्पलता की कहानी है, जिसे एक विराटवृक्ष के साहचर्य में आने की कीमत अपने अस्तित्व को ओझल करके चुकानी पड़ी. गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर की पत्नी मृणालिनी देवी का सिर्फ एक ही परिचय था, कि वे विश्वकवि की सहधर्मिणी हैं. उनका जीवन मात्र अट्ठाइस वर्षों का रहा, जिनमें से उन्नीस वर्ष उन्होंने रवीन्द्रनाथ की पत्नी के रूप में जीया. रबीन्द्रनाथ की विराट छाया में मृणालिनी का अन्तर्जगत हमेशा अंधेरे में रहने को ही अभिशप्त रहा. रबीन्द्रनाथ से इतर उनका अपना कोई अस्तित्व मानो रहा ही नहीं. लेकिन क्या सचमुच ऐसा ही था? क्या अपने निजी जीवन में मृणालिनी ने दाम्पत्य का सहज सुख पाया और अपने जीवनसाथी की सच्ची सहधर्मिणी हो पाई थीं? क्या उन्हें रबीन्द्रनाथ की पत्नी के रूप में प्रेमपूर्ण जीवन जीने को मिला था? इन तमाम सवालों का जवाब है यह उपन्यास जिसमें एक स्त्री के सम्पूर्ण मन-प्राण की व्यथा इस तरह अभिव्यक्त हुई है, जो इतिहास को नई रौशनी में देखने की मांग करती है.
आज साहित्य तक के बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने इसी पुस्तक 'मैं रवीन्द्रनाथ की पत्नी' पर चर्चा की है. रंजन बंद्योपाध्याय ने यह पुस्तक मूलतः बांग्ला में लिखी है, जिसका हिंदी अनुवाद शुभ्रा उपाध्याय ने किया है. इस अविस्मरणीय कृति को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. 165 पृष्ठ समेटे इस पुस्तक का मूल्य 199 रुपए है.