व्यक्ति अपने आप से भाग नहीं सकता; वह बस इतना ही कर सकता है कि स्वयं को समझे. वही उसका अपना खालीपन है, अकेलापन है; और जब तक वह इसको अपने आप से अलग कोई चीज़ मानता है, वह भ्रम-भ्रांति में तथा अंतहीन संघर्ष में लगा रहेगा. जब वह प्रत्यक्ष रूप से अनुभूत कर लेता है कि अपना अकेलापन वह स्वयं ही है, केवल तभी भय से मुक्ति हो पाती है.”
‘जीवन संवाद- 1’ स्वतंत्रचेता दार्शनिक तथा शिक्षक जे. कृष्णमूर्ति की आगंतुकों की जिज्ञासुओं से जुड़े वार्तालाप का संग्रह है. यह पुस्तक ‘Commentaries on Living – 1’ का हिंदी अनुवाद है जिसमें श्रोता जीवन के विविध विषयों पर अपने समय के इस महान शिक्षक और दार्शनिक का उत्तर चाहते थे. कृष्णमूर्ति की यह विशेषता है कि वे उन प्रश्नों व समस्याओं की गहराइयों में पैठ कर उनसे जुड़े सभी आयामों को उजागर करते हैं. इस पुस्तक के साथ ही ‘विचार और प्रेम’, ‘राजनीति’, ‘सत्य की खोज’, ‘विश्वास’, ‘अंतर्विरोध’, ‘मन की व्यस्तता’, ‘सौंदर्य’ एवं ‘सुरक्षा’, 'मौन', 'अहं' और 'ज्ञान' आदि विषयों पर प्रश्न और उत्तरों का मंथन एवं संवाद, हमारे अपने प्रश्नों को भी स्पर्श करता चलता है.
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आज की किताबः जीवन संवाद-1
मूल किताब: Commentaries on Living – 1
लेखक: जे. कृष्णमूर्ति
अनुवादक: जमनालाल जैन
भाषा: हिंदी
प्रकाशक: राजपाल एंड संस
विधा: दर्शन-शास्त्र
पृष्ठ संख्या: 336
मूल्य: 475 रुपये
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए इस पुस्तक की चर्चा.