निर्वस्त्र हूं, नग्न नहीं हूं
मैं सारे बंधन फेंक आयी हूं बहुत पीछे
कोई छाया नहीं रही मेरे मन पर
कोई कपड़ा नहीं रहा मेरी देह पर
यह देह भी कहां रह गयी मेरी
मल्लिकार्जुन से मुलाक़ात के बाद...
अक्क महादेवी कौन थीं? उनके जीवन और वचन में ऐसा क्या था जो सदियों से न केवल दक्षिण भारत बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज, दर्शन और संस्कृति को प्रभावित करता रहा है. महादेवी के जीवन, वचन और संदेशों पर गम्भीर तथ्यपरक, तर्कसम्मत, शोध और आलोचना, सर्जनात्मक कल्पनाशीलता से किया गया बेहद महत्त्वपूर्ण कार्य, जिनमें उनके वचन के सौ अनुवाद और कुछ छाया-कविताएं भी शामिल हैं. रज़ा फाउंडेशन के सहयोग से रज़ा पुस्तक माला के तहत प्रकाशित एक अनूठी पुस्तक.
आज की किताबः 'दिगम्बर विद्रोहिणी अक्क महादेवी'
लेखक: सुभाष राय
भाषा: हिंदी
विधा: आलोचना
प्रकाशक: सेतु प्रकाशन/ रज़ा फाउंडेशन
पृष्ठ संख्या: 440
मूल्य: 449
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.